banarasi saree history

बनारसी साड़ी: इतिहास, पहचान और आज के दौर में इसका महत्व

नमस्ते दोस्तों! मैं वैष्णवी।

जब भी हम किसी शादी या बड़े फंक्शन के बारे में सोचते हैं, तो एक तस्वीर हमारे मन में ज़रूर आती है – सोने और चांदी के धागों से बुनी हुई, रेशम सी मुलायम, एक खूबसूरत बनारसी साड़ी। बनारसी साड़ी सिर्फ एक पहनावा नहीं है, ये एक विरासत है, एक कला है जिसे कारीगर पीढ़ियों से सहेजते आ रहे हैं।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये खूबसूरत कला कहाँ से आई? इसकी शुरुआत कैसे हुई? और आप कैसे पहचान सकती हैं कि आपके हाथ में जो साड़ी है, वो असली बनारसी है या नहीं?

आज इस ब्लॉग में, हम इसी सुनहरे इतिहास की यात्रा पर चलेंगे और बनारसी साड़ी के बारे में वो सब कुछ जानेंगे जो हर फैशन प्रेमी को पता होना चाहिए।

बनारसी साड़ी आखिर है क्या?

बनारसी साड़ी एक खास तरह की साड़ी है जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी (पुराना नाम बनारस या काशी) शहर में बनाई जाती है। ये अपने सोने और चांदी के ब्रोकेड या ज़री (Zari), महीन रेशम (Silk) और शानदार कढ़ाई के लिए जानी जाती है। इन साड़ियों पर बने डिज़ाइन मुगल काल से बहुत ज़्यादा प्रेरित होते हैं, जैसे फूलों और पत्तियों के पैटर्न (कलगा और बेल), और झालर। एक असली बनारसी साड़ी को बनाने में 15 दिन से लेकर एक महीने, और कभी-कभी 6 महीने तक का समय लग सकता है।

इतिहास के पन्नों से: कहाँ से शुरू हुई ये कला?

बनारसी साड़ी की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिनका उल्लेख महाभारत और बौद्ध ग्रंथों में भी मिलता है। लेकिन आज हम जिस बनारसी साड़ी को जानते हैं, उसे उसका शाही रूप मुगल काल में मिला।

  • मुगल कनेक्शन: 16वीं शताब्दी में, जब मुगल सम्राट अकबर का शासन था, गुजरात से बहुत से बेहतरीन रेशम के बुनकर अकाल और दूसरी वजहों से वाराणसी आकर बस गए। वे अपने साथ बुनाई की नई तकनीकें लेकर आए। मुगलों को कला और शान-शौकत का बहुत शौक था। उन्होंने ही भारतीय कारीगरों को सोने-चांदी के धागों से कपड़े पर डिज़ाइन बनाने के लिए प्रेरित किया। इसी भारतीय और मुगल कला के संगम से उस बनारसी साड़ी ने जन्म लिया, जिसे आज हम जानते हैं।

कैसे पहचानें असली बनारसी साड़ी? (4 आसान ट्रिक्स)

बाज़ार में नकली बनारसी साड़ियां भी बहुत मिलती हैं। असली बनारसी की पहचान के लिए इन 4 बातों का ध्यान रखें:

  1. साड़ी का उल्टा हिस्सा देखें: ये सबसे पक्का तरीका है। असली, हाथ से बुनी हुई बनारसी साड़ी के उल्टे हिस्से पर आपको धागों का एक जाल (जिसे फ्लोट्स कहते हैं) दिखेगा, जो डिज़ाइन की बुनाई के बाद बच जाता है। मशीन से बनी साड़ियों में ये नहीं होता, उनमें एकदम सफाई होती है।
  2. मोटिफ्स (डिज़ाइन) को ध्यान से देखें: असली बनारसी साड़ी में आपको पारंपरिक मुगल डिज़ाइन जैसे फूल-पत्ती (kalga, bel), कोने पर बने आम के डिज़ाइन (konia), और झालर जैसे पैटर्न दिखेंगे।
  3. सिल्क मार्क सर्टिफिकेट: भारत सरकार असली सिल्क प्रोडक्ट्स के लिए “सिल्क मार्क” का सर्टिफिकेट देती है। खरीदारी करते समय आप दुकानदार से इसके लिए पूछ सकती हैं।
  4. ज़री को परखें: असली ज़री में सोने या चांदी की थोड़ी मात्रा होती है। आप ज़री का एक छोटा सा धागा निकालकर उसे जलाकर देख सकती हैं। असली ज़री जलने के बाद एक सुनहरी या चांदी जैसी गेंद छोड़ती है, जबकि नकली ज़री जलकर एक काली, चिपचिपी गेंद बन जाती है।

बनारसी साड़ियों के मुख्य प्रकार

मुख्य रूप से बनारसी साड़ियां 4 तरह के फैब्रिक में आती हैं:

  • कतान (Katan): ये शुद्ध रेशम (Pure Silk) से बनी होती है और सबसे लोकप्रिय है।
  • ऑर्गेंज़ा / कोरा (Organza / Kora): ये एक बहुत ही महीन और हल्की साड़ी होती है, जिस पर ज़री और रेशम से डिज़ाइन बुना जाता है।
  • जॉर्जेट (Georgette): ये एक हल्का और फ्लोई फैब्रिक है, जो मॉडर्न डिज़ाइन्स के लिए इस्तेमाल होता है।
  • शट्टिर (Shattir): ये एक थोड़ी सस्ती और सिंपल बनारसी साड़ी होती है, जिसे रोज़मर्रा के मौकों के लिए बनाया जाता है।

भारतीय टेक्सटाइल के इतिहास के बारे में और जानने के लिए आप Wikipedia की वेबसाइट्स देख सकती हैं।

बनारसी साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं, ये भारत की कला, संस्कृति और सुनहरे इतिहास का एक जीता-जागता सबूत है। ये वो विरासत है जो एक माँ अपनी बेटी को देती है। तो अगली बार जब आप किसी को बनारसी साड़ी पहने देखें या खुद पहनें, तो याद रखिएगा कि आप अपने ऊपर सिर्फ़ एक साड़ी नहीं, बल्कि सदियों की कला और मेहनत को लपेट रही हैं।

– वैष्णवी 🌿

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